कई बार हमें यह समझना बहुत मुश्किल लगता हैं की लोग दुसरो के बारे में इतना चिंतित क्यों है। आपने घर से ज्यादा चिंता उनको आपने पड़ोसियों की है। वह क्या सोच रहे है? पड़ोसन ने यह यह क्यों कहा? क्या खा रहे है? उनके बच्चे क्या रहे है? उनके घर में क्या नयी चीजें आ रही है? उनके घर कोन आते है,व्यग्यरा ,व्यग्यारा। अगर पास-पडोसी नहीं तो ऑफिस की पॉलिटिक्स ही सही या फिर माँ -मामी,सास-ससुर,देवर-देवरानी यानी की फैमिली पॉलिटिक्स।
पुराने जमाने से हमारे बुजुर्ग हमें यह सिखाते आये की पड़ोसिया के बारे में ताक झांक करना बहुत बुरी आदत है; इसमें घर में क्लेश बढ़ता है,झगड़े बढ़ते है और घर की शांति छिन जाती है.
तो फिर सवाल यह है की यह उत्सुकता क्यों?
मनुष्य सामाजिक प्राणी है और वह अकेला नहीं रह सकता। उसे आपने चारो ओर आपने ही जैसे सामाजिक प्राणी चाहिए,तभी वह बोलना सीखता है,उनकी तरह हाव भाव सीखता है, सोच विकसित होता है और आपने आप को समाज का हिस्सा मानता है। बादशाह अकबर ने यह प्रमाण करने के लिए एक गूंगी औरत के साथ कुछ बिलकुल छोटे बच्चे एक जंगल में उनका पालन पोषण के लिए भेज दिया। कुछ साल बाद जब वह बच्चे वापस आए तो वह भी गूंगे थे और उन्हें माँ, बाप,आदि रिश्तो का कुछ पता नहीं था ! इसलिए बच्चा जब पैदा होता है तब उसे बाषा देने में उसकी माँ और उसके परिवार का बहुत अहम हिस्सा होता है।परिवार में रह के बच्चा आपने रिश्तो को भी धीरे धीरे समझता है।
मनुष्य समाज में रहते हुए दूसरे लोगों के बारे में जब उत्सुकता दिखाता है तो इसमें उसका Left-Brain/Right Brain Activity कायम रहता है। यह सोचना गलत है की brain development 18 या 21 या एक समय के बाद बढ़ना बंद कर देता है।
ज़रा सोचिए अगर जानने की उत्सुकता नहीं होती तो क्या आज दुनिया उस मक़ाम तक पहुँचती जहाँ आज हम हैं ?
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